Friday, November 12, 2010

बेदाग चाँद (लम्हें बचपन के,नन्हीं कलम से-आपने भाई शशी रंजन को, जबसे होश सम्भाला उसे हज़ारों मील दूर मुम्बई मे पाया )





हाँ ये चाँद बेदाग है
जिस से हम सबको अनुराग है

पर ये चाँद तो धरती पर है
फिर भी हुम सब से दूर है

बादलों में छिपे उस चाँद जैसा लगता है
जो कुछ क्षण दिख कर फिर छिप जाता है

पर कभी तो ये बादल छटेंगे
फिर हम जी भर कर देख लेंगे

ये हँसता बोलता चाँद,है हम सबकी जान
हमें है इस पर बडा ही मान

है तो ये बडा ही जीनियस

पर रहता है हरदम सीरियस
कर देता है हम सबको नीरस

इसका रहस्य है बडा ही गूढ
पल पल मै बदलता है इसका मूड

कभी लगता है खोया खोया
और लगता है सोया सोया

बेबात मुस्कुरा देता है
हम उदासों को हँसा देता है

पर हम जानते हैं

ये फिर धोखा दे जायेगा
दूर बदलों में खो जायेगा

सब खुशीयाँ साथ ले जायेगा
एक मीठी याद दे जायेगा

पर कभी तो ये बादल छटेंगे
फिर हम जी भर कर देख लेंगे

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