Tuesday, November 9, 2010

तीसरा महायुद्ध ( लम्हें बचपन के... नन्हीं कलम से )

तीसरा महायुद्ध
जी हाँ तीसरा महायुद्ध

पर ये वो  महायुद्ध नहीं  
जिसके बारे में आप सोच रहे हैं

ये महायुद्ध है मेरे घर का
मेरे मम्मी-डैडी के बीच का

कल रात हुआ झगड़ा 
मेरे मम्मी-डैडी के बीच

और बन गया हम
आधा दर्ज़न बच्चों का सैंडविच 

मम्मी -डैडी अपने कमरे में झगड़  रहे थे
और हम सभी बच्चे कोने में दुबके पड़े  थे

सोचा था आज अंग्रेज़ी का कुछ याद कर लेंगे
कल क्लास में जा कर रोब मार लेंगे

पर क्या सोचा था
मम्मी-डैडी ये रंग दिखा देंगे?

झगडा बढ्ता ही जा रहा था
कई रंग बदलता ही जा रहा था

डर से हमारे चेहरे के भी रंग बदल रहे थे
मम्मी डैडी थे कि रुकने का नाम ही नहीं  ले रहे थे

मम्मी मायके जाने की धमकी दे रही थी
पहले तीन को साथ ले जाने को कह रही थी

कह रही थी, न रखूंगी यहाँ कभी कदम
न खा लोगे जब तक, न लड़ ने की कसम

छै बच्चों की पार्टी दो जगह बँट गयी
आधे मम्मी की तरफ़ और आधे डैडी की तरफ़

मम्मी का पलड़ा  भारी था
पर पापा का गुस्सा भी जारी था

मैं क्योंकि पिछ्ले तीन में थी
इसलिये पापा की टीम में थी

सिचुएशन भारत- ऒस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैच की सी थी
ज़ाहिर है, हमारी हालत भारतीय टीम की सी थी.

हमारी सभी बातें तो विकटों की तरह उड़ती जा रही थी
और मम्मी थी कि चौके व छ्क्के मारे जा रही थी

हमारे जीतने की बात तो दूर
यहाँ तो ड्रा करना भी मुश्किल था

मम्मी अपनी बात पर अड़ी  थी
अटैची लिये तैयार खडी थी

हम तीनों का पापा सहित पलडा हल्का था
सभी को मम्मी के चले जाने का खटका था

बस सिर झुकाए खड़े  थे
तोड़ी  गई प्लेटों का हिसाब कर रहे थे

आखिर ये नुक्सान हमें ही तो भुगतना था
हर महीने के जेब खर्च से चौथाई भरना था

मम्मी चीखती जा रही थी
सारे घर को सिर पर उठा रही थी

मम्मी द्वारा वो धाकड डायलाग बोले जा रहे थे
जो हेमा, और रेखा को भी मात कर रहे थे

पापा की बातें तो संक्षिप्त सी थी
सिचुएशन फ़िल्म के एक्स्ट्रा की सी थी

पर हम सोच रहे थे कि ये महायुद्ध रोका कैसे जाये
मम्मी का पारा नीचे कैसे गिरया जाये

अन्त में फ़ैसला खूब किया गया
मम्मी को मैन ओफ़ द मैच घोषित किया गया
और पापा... पापा .. बिचारो की हालत तो क्रिकेट के १२ वे खिलाड़ी की सी थी

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