नववधू की हृदय विदारक चीत्कार,
बिखरी है व्योम में,
चूड़ियों के टूटने की आर्त पुकार,
गूंजी है रोम-रोम में।
बिलखते बच्चों की भयभीत दृष्टि,
छाती पीटती माँ की नयन वृष्टि।
हर मोड़ पर लहू में डूबी उम्मीद की लकीर,
रक्तरंजित घाटी में तड़पती वेदना की तस्वीर।
क्या यही है मेरा कश्मीर ? क्या यही है मेरा कश्मीर?
इन वादियों में गूँजती है दर्द की कहानियाँ,
सिसकती फ़िज़ाओं में भटकती जवानियाँ
कहीं धधकती चिताओं से उड़ती राख
ज़ख्मों पर छिड़कती सियासी खाक
शोकसभा में बँट गई संवेदनाएँ
कैंडल मार्च में जल गयी आशायें
आँसू भी यहाँ बिकते हैं संसद के गलियारों में,
और दर्द…बस मुद्दा बन जाता है अगले चनावों में।
अंधकार की सीमा पर बैठा
डर और ग़ुस्से के बवंडर में पैठा
ध्वस्त दीवारों में सिसकता शांति प्रस्ताव
दरिद्रता की ढेरी पे बैठ पड़ौसी दिखाता ताव
वोह भूखा है
वोह नंगा है
मगर बारूद के पुंज पर बैठा है
हद हो गई अब—और सहा न जाएगा,
वेदना का यह लावा अब आक्रोश में ढलता जाएगा।
बहुत हुआ अब मूक तमाशा,
है मार मिटाने की अभिलाषा।
हर दिल में आग धधकती है
हर घर में ज्वाला भभकती है
अब विनाश का उत्तर सृजन नहीं ,
बलिदान का उत्तर प्रतिशोध है।
माँ की चूड़ियाँ मांगती है हिसाब,
देदो शहीदों की चिताओं और
बच्चों की चीखों का जवाब।
हर राख से चिंगारी भड़केगी
हर कब्र से सिपाही निकलेगा
हर बन्दूक आग उगलेगी
हर दुश्मन की जान निकलेगी
कश्मीर हमारे सर का ताज
तुम हथियार उठा लो आज