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AHSAAS Poem by Dr. Madhvi Mohindra

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                                                                                                             कभी सोचा न था कि वक्त इतना वक्त दे देगा इस वक्त को यू बिताने के लिये आज जब वक्त मिला तो मुड कर देखा उस वक्त को जब वक्त नही    था आज के इस वक्त को जानने का कभी जिन्दगी के पीछे भागते कभी जिन्दगी के साथ भागते वक्त कैसे हाथ से फिसल गया ये सोचने का वक्त ही नही   मिला आज जब वक्त मिला तो मुड कर देखा उस वक्त को जब वक्त नहीं था आज के इस वक्त को जानने का आज यूहीं   वक्त बिताने को खोल बै्ठी परछत्ती पर रखी पुरानी अटैची , बयान करती वक्त की कहानी टूटा ताला , उखडा हैन्डल , उधडी बखिया मेरी ही तरह घूम कर पूरी दुनिया व्यक्त करती बीते वक्त की कहान...

"Delhi Dehali " By Dr. Madhvi Mohindra

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                                                                    मेरी दिल्ली के जवां सीने पर तारीखी मीनारों की कतारें थी रवां खेंच दी किसने ये एक और नफरत ए मीनार उन दिलों और मीनारों के मयां किसने फूलों से कहा तुम न बहारों से मिलो किसने कलियों से तबस्सुम का चलन छीन लिया किसकी बेरहम सियासत ने उठा कर खंजर दिलवालों की दिल्ली का जिगर चीर दिया कितनी हसरत से इंडिया गेट की दीवारें तकती   हैं कितने पृथ्वीराज और विक्रमादित्य का बलिदान छिपा था इसमें ग़ालिब की ग़ज़ल और गंगा ए जमुनी तज़ीब की कसम कितने फनकारों का इश्क ए बयान छिपा था इसमें कितने चिराग थे जो बेनूर घरोंदों में जले कितने ज़र्रे थे , जो तारों से हमआगोश हुए                                              ...