Friday, April 10, 2020

"Delhi Dehali " By Dr. Madhvi Mohindra



                                                  

मेरी दिल्ली के जवां सीने पर
तारीखी मीनारों की कतारें थी रवां

खेंच दी किसने ये एक और नफरत ए मीनार
उन दिलों और मीनारों के मयां

किसने फूलों से कहा तुम न बहारों से मिलो
किसने कलियों से तबस्सुम का चलन छीन लिया

किसकी बेरहम सियासत ने उठा कर खंजर
दिलवालों की दिल्ली का जिगर चीर दिया

कितनी हसरत से इंडिया गेट की दीवारें तकती  हैं
कितने पृथ्वीराज और विक्रमादित्य का बलिदान छिपा था इसमें

ग़ालिब की ग़ज़ल और गंगा ए जमुनी तज़ीब की कसम
कितने फनकारों का इश्क ए बयान छिपा था इसमें

कितने चिराग थे जो बेनूर घरोंदों में जले
कितने ज़र्रे थे , जो तारों से हमआगोश हुए

                                           कितनो के तस्सबुर का ख्वाब है                                                                                                                                                                वो
ग़ालिब की गालिया और चांदनी चौक की बत्तियां

पर यह जंतर - मंतर , लाल किला और यह निशान ए मंज़िल
अपनी उस ज़द  ज़हद की मिसाल तो नहीं

उफ़ यह मोमबत्तियों की कतारें , ये जनाज़ों का जुलूस
अपनी सदियों की ग़ुलामी की दवा तो नहीं ।

No comments:

Post a Comment