Wednesday, February 19, 2020

मै निर्भया हूँ

                           


मै निर्भया हूँ.
मैं,  गुनहगार हूँ !
इसकी उसकी आपकी  सबकी !

हाँ हाँ  मै गुनहगार हूँ उस माँ की ,
जिसकी कोख से मैंने जन्म लिया

मै गुनहगार हूँ उस पिता की
जिसकी उंगली पकड़ कर चलना सीखा

गुनहगार हूँ उस भाई की
जिसकी कलाई को मैंने सदा के लिए  सूना छोड़ दिया 

गुनहगार हूँ मै उस दोस्त की
जिसे अपने गुनाह में मैंने भागिदार कर लिया

पर मैं  कहाँ ऐसी थी?
 मै भी तो इसके उसकेआपके  सभी के जैसी थी 

आँखों में देखे उन  सपनों को पूरा करना चाहती थी 
एक ऊँची उड़ान से आसमान छूना चाहती थी

अपने पापा के थके हाथों को सहारा देना चाहती थी
अपनी बूढ़ी माँ की आँखों की ज्योति बनाना चाहती थी

लेकिन मेरे  गुनाहों ने
सब तबाह कर दिया

मेरे जुर्म की काली आंधी ने
आलोकित ज्योति को अंधकार में डुबो दिया

मेरे गुनाह अनंत है
मेरे गुनाह अक्षम्य है


दरिंदो की दरिंदगी का सामना करने का गुनाह
आखरी सांस तक उन्हें चुनौती देने का गुनाह

झूठी बदनामी के डर को डराने का गुनाह
अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का गुनाह 

अपने और अपने जैसे पीड़िताओं  के लिए इन्साफ मांगने का गुनाह
अपने क्षक्त-विक्षत शरीर और आत्मा के साथ भी जीने की चाह का गुनाह
मैं गुनहगार हूँ ! इसकी उसकी ,आपकी,  सबकी !
तभी तो पिछले सात सालों से अपने गुनाहों की सज़ा भुगत रही हूँ 

कानून की किताब में मेरे बलात्कार का एक दिन दर्ज़ है
पर इस समाज की किताब में मेरे बलात्कार के  २५५५ दिन  दर्ज़ है 

मेरा  बलात्कार तो  हर बार हुआ ,
हर सड़क परहर कूचे पर
हर घर के टेलीविज़न पर
हर बार हुआ
बार बार हुआ

यह  सालों का लम्बा इंतज़ार
जहाँ मानवता को मरते देखा बार -बार


जानवरों के हितों के अघिकार
बलात्कारियों के मानवाधिकार
आतंकवादियों के मानवाधिकार
यहाँ तक की गैंगस्टर्स के शवाधिकार के
जुलूस और नारों की बीच एक मै ही
बेहद बेबस बेहद  लाचार
क्योंकि मै गुनहगार हूँ ,
इसकी उसकीआपकी सबकी

भूल गयी थीहां मैं बिलकुल भूल गयी थी 

कि सदियों से खींची जो यह लक्ष्मण रेखा है 
ये आज और भी गहरा गयी है
   
तब सतयुगी छली गयी
आज निर्भया छली गयी
कल कोई और छली जाएगी
 ये ग़लती आज की निर्भया की नहीं
हर युग में पैदा होने वाले रावण और दुर्योधन की है

 सीता जंगल में किसी पराये मर्द के  साथ थी
 द्रोपदी अकेली घर से बाहर थी 

१४ बरस बनवास काट कर भी सीता ने अग्नि परीक्षा दी
मेरी तो मौत के तो  साल  बाद भी लोगों ने हैवानियत की हदें पार कर दी

अब मैं थक गयी हूँ  खुद को निर्दोष साबित करते -करते
इस अंधे कानून से इंसाफ मांगते मांगते
मेरी भटकती रूह अब सोना चाहती है


बस रोक दो मुझे इन्साफ दिलाने की ये असफल कोशिशे
बुझा दो मेरे लिए ये जलती हुई ये चंद मोमबत्तिये

जो शायद कल मज़हबी नफरत में
किसी बस्ती को जला देने के  काम आये

लेकिन आज के  बाद कभी मुझ जैसी को निर्भया नाम मत देना
मैं मैं तो बहुत भयभीत हूँ  क्योंकि मैं गुनहगार हूँ

इसकी उसकी आपकी सबकी






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