ख़ूबसूरत ग़लतफ़हमी



यूं ही राह चलते,
कभी बात करते,
आपका हाथ मेरे हाथों में आया,
तो ऐसा लगा,
इस अजनबी शहर में भी कोई अपना है.
जानती हूँ मेरी ख़ूबसूरत ग़लतफ़हमी की ख़बर पा कर आप...
ज़रा सा मुस्कुराऐंगे...
आँखों में, शैतानी भरा अन्दाज़ लिये..

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