कल फुर्सत के वक़्त , बिटिया के संगजब साझा की पुरानी कृतियाँकुछ पूरी, कुछ अधूरीकुछ कही कुछ अनकहीदे गयी मेरी आँखों में पानीऔरबिटिया की आँखों में हैरानीवह हँस कर बोली , सही किया मम्मी ,जो तुमने लिखना कम कर दिया...इस से पहले की में कुछ कहती उसकेवक्तव्य के सकारात्मक या नकारात्मकभाव का विश्लेषण करतीउसके केवल चार शब्दों नेमेरी दुविधा को मौन दियाविचित्र ! अद्भुत ! अविश्वसनीय ! अकल्पनीय !एका एक वर्षों से लिखे वे अनगिनत शब्दनिःशब्द हो गए ,जहाँ ,कहीँ था हसीन ऊँची वादियों का चित्रणतो कहीँ फूलों में महकते २ प्रेमियों का विवरणवो पहली बारिश में आती मिट्टी की खुशबुकागज़ की कश्ती पर क्षितिज पार जाने की जुस्तजूवो परी देश की रानीऔर घोड़े पे आता वो अभिमानीवो खेत , वो खलिहान , वो नानी का गाँवनीम और पीपल के पेड़ों की वो छाँववो आँगन में चारपाइयों की कतारमिट्टी के चूल्हे पे पकता बैंगन का बघारअंगीठी के इर्द -गिर्द वोह ठंडी रातऔर पापा की वो ढेर सारी बातवीर बालाओं की गाथाएं और ईमानदारी के किस्सेयह सभी तो थे मेरी रचनाओं के हिस्सेउस विचित्र ! अद्भुत ! अविश्वसनीय ! अकल्पनीय ! अतीत को जीया है मैंनेउसके हर लम्हे को अपने आगोश में संजोया है मैंनेहाँ यह सच है !तब नदियों और झरनों में पानी निर्झर बहता थाक्योंकि तब वोह बाज़ार में नहीं बिकता थाऔर ये भी सच है !तब FOG उन खुबसूरत वादियों का हिस्सा होती थीऔर SMOG सिर्फ शब्दकोष का हिस्सा होती थीयह सच है कि,तब भी युगल प्रेमी फूलों के बगीचे में मिलते थेऔर अपने प्रेम के किस्सों कि किताबे लिखते थेपर वो प्रेम गाथाएं ,अमर हो जाती थी .शम ए आम बन कर , SOCIAL MEDIA के पन्नो पर नहीं बिखरती थी.और हाँ,तब सच में परियों की रानी भी होती थी,और उनके सपनों का असली राजकुमार भी होता थाक्योंकि तब रात के अंधेरों में सिर्फ जगमगाती बरात आती थीसफ़ेद कपड़े में लिपटी बेटी कि अर्धनग्न लाश नहीं आती थीविचित्र ! अद्भुत ! अविश्वसनीय और अकल्पनीय नहीं हैसम्मान कि रक्षा में उठी वीर बालाओं कि तलवारेंविचित्र है, चंद चांदी के सिक्कों के लिए सम्मान का समझौताऔर ME TOO आंदोलन कि आढ़ में स्पश्टीकरण का मुखौटाअद्भुत है !वो उत्पीड़न, जो कल शर्म के मारे बेज़ुबान थाआज वो हर गली और नुक्कड़ की ज़ुबान हैअविश्वसनीय है !मंदिरों कि बढ़ती हुई इमारतेंऔर घटती हुई देविओं कि इबादतेंअकल्पनीय है किकब सत्य, चरित्र, सहनशीलता, और स्नहे बाजार में निलाम हो गएऔर अब इंसान तो क्या देवता भी हैवान हो गए .अब न बहती है वो नदियों कि धारन चेहरों पर न बगिया में बहारजल रही है वो अब सर्द रातन अंगीठी , न चुलाह न बैंगन न भातसब कुछ सिमट कर घुट गया हैमहत्वकांक्षाओं कि ऊंची इमारतों मेंप्रतिस्पर्धा , प्रतिशोध और प्रतिष्ठा कि आग में जलताकितना विचित्र ,कितना अद्भुत ,कितना अविश्वसनीय , कितना अकल्पनीयहमारा आज
No comments:
Post a Comment